भारतीय फर्नीचर फर्म और ओईएम् (ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर) इस बात से परेशान हैं कि उनके कारोबार का ग्रोथ क्यों नहीं हो रहा है ? इस इंडस्ट्री से जुड़े एक्सपर्ट इसके पीछे कई कारण बताते है, जिसमें सबसे अहम् कारण है, फर्नीचर इंडस्ट्री का रिकोग्नाइज ना होना, मैन्युफैक्चरर के पास विजन की कमी होना और आपस में प्राइस को लेकर खींचातानी करना। देश में फर्नीचर कारोबार के आंकड़ों पर नजर डाले तो साल 2025 तक 25 मिलियन और साल 2030 तक 30 मिलियन के आंकड़े को पार कर जाएगा।
बीते साल 2022, सितम्बर महीने में तीन दिनों तक मटेसिया का आयोजन दिल्ली के प्रगति मैदान में किया गया था, जिसमें फर्नीचर इंडस्ट्री से जुड़े देशभर के दिग्गजों ने भाग लिया। इसमें IIR यानी INDIA INTERIOR RETAILING के फोरम पर फर्नीचर इंडस्ट्री को लेकर इस टॉपिक पर चर्चा की गयी। इसमें स्लिक बोर्ड के सीईओ नितिन वाज़, परसका किचन के एमडी स्वस्तिक रनका, कापले के सीईओ सत्यन ठकराल, एएफसी फर्नीचर सोलूशन के फाउंडर और एमडी मनोज तोमर, इंडो डिजाईन की सीओओ नीति मक्कर, एफएफसी के सीईओ राहुल मेहता, स्पेस वुड के फाउंडर कीरित जोशी मौजूद रहे।
एक्सपर्ट ने बताया कि उन्होंने पैनल इंडस्ट्री और फर्नीचर मैन्युफैक्चरर इन दोनों को ऑब्जर्व किया है। इनके मुताबिक़ देश में फर्नीचर इंडस्ट्री बड़े पैमाने पर सेटअप हो रही है मगर उनके अंदर विजन की कमी है वास्तव में वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस टाइप के फर्नीचर पर फोकस करना चाहिए। प्राइस तो एक सिंपल टर्म है सबसे कठिन ग्रोथ की सीढ़ी चढ़ना होता है। कईयों के पास गुड डिजाइन, गुड मटेरियल और गुड रीजन है मगर अफसोस इस बात का है कि ज्यादातर यूनिट के लिए प्राइसिंग मेन फेक्टर है जिसकी वजह से क्वालिटी गिरा रहे हैं। स्पेशलाइजेशन हेल्थी फर्नीचर, सेफ्टी एंड नेचर एंड स्कूल फर्नीचर, मॉडरेट लग्जरी फर्नीचर एंड हॉस्पिटैलिटी फर्नीचर यह ऐसे फर्नीचर है जो एक बड़ी इंडस्ट्री बन सकती है मगर लोग आपस में कंपटीशन कर इस इंडस्ट्री को डाउन कर रहे हैं।
ओईएम के लिए सबसे बड़ा चैलेंज लैंड की उपलब्धता है। पहले ओईएम की फैक्ट्री शहर के नजदीक होने पर लैंड कॉस्ट और रेंट कॉस्ट बहुत ज्यादा हुआ करती थी। फाइनेंस की कोई सुविधा नहीं हुआ करती थी। ऐसे में एक ओईएम के लिए फैक्ट्री खोलना बेहद मुश्किल होता था। शहर से दूर रहने पर सबसे बड़ी चुनौती पावर, पानी और लेबर की उपलब्धता होती थी। मगर अब इंफ्रास्ट्रक्चर के आने से इंडस्ट्री कॉरिडोर बन रहे हैं। कोई भी प्रॉब्लम जल्द से जल्द सॉल्व हो रही है। फैक्ट्री की साइज बड़ी होती जा रही है। हांलाकि ओईएम के लिए लैंड पहली चुनौती फाइनेंस दूसरी चुनौती है। आजकल फाइनेंस ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट के लिए उपलब्ध नहीं है बल्कि ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट के लिए आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं।
बिजनेस प्लान के प्लानिंग फेस में कई प्रॉब्लम आती हैं। कंपनी वर्किंग कैपिटल, मार्केटिंग सेल्स के बारे में नहीं सोचती बल्कि 50 लाख की मशीन लाकर यह सोचती हैं कि बिज़नेस शुरू हो जाएगा। मगर हकीकत ये है कि इतने अमाउंट में मशीन परचेज करने के बाद कंपनी अपना प्लान एक करोड़ का कर देती है, जिसके लिए 25 लाख रु अलग से रखने पड़ते हैं। इसलिए प्लानिंग फेस में बहुत कंपनी को सस्टेनेबल प्रॉब्लम आ जाती है इसलिए वह ग्रो नहीं कर पा रही हैं। वर्किंग कैपिटल में इशू आ जाते हैं। जो ओवररेट को कैलकुलेट नहीं कर रहे, मार्जिन को कैलकुलेट नहीं कर रहे। वो आपस में ही प्राइस को लेकर कंपटीशन कर रहे हैं।
भारत में ज्यादातर इम्पोर्टेड फर्नीचर से जुड़े ओईएम और फर्नीचर फर्म चाइना या यूरोप के डिजाइनर फर्नीचर की कॉपी करने लगते हैं। अपने डिजाइन पर काम बिल्कुल नहीं करना चाहते। बिना कुछ करे 1000 करोड़ से दो हजार करोड़ की कंपनी बन जाए बस यही सोचते रहते हैं। इंडिया के अंदर फर्नीचर का मार्केट बड़ा है पर ऑफिस फर्नीचर को लेकर इंडिया में केवल 5 कंपनियां ही है। माइंडसेट क्लियर है तो सब कुछ पॉसिबल है। आज गवर्नमेंट इसके लिए लैंड उपलब्ध करवा रही है, इलेक्ट्रिसिटी 24 * 7 दे रही है। अगर पॉजिटिव माइंड के साथ काम करते हैं तो इंडिया भी चाइना के साथ में चल सकता है उससे ज्यादा कर सकता है। इस सेक्टर में आने वाली कम्पनियां ना तो अपने थॉट को डिवेलप करना चाहती हैं और ना ही 10 साल आगे की थॉट को नहीं लेकर चलना चाहती हैं।
भारत में फर्नीचर के नाम से इंडस्ट्री रिकॉग्नाइज नहीं है। सबसे पहले इस पर काम करना होगा। इसके मार्केट फिगर कहां से आ रहे हैं यह नहीं पता। अगर यह बड़ी इंडस्ट्री हैं तो गवर्नमेंट को इसे पुश देना चाहिए। गवर्नमेंट जिस सेक्टर को पुश कर रही है वहां बेसिक प्रॉब्लम को टेक केयर किया जाता है। जीएसटी की वजह से फर्नीचर कॉटेज इंडस्ट्री से थोड़ा ऊपर उठा हैं। इस इंडस्ट्री को रिकॉग्नाइज करना बेहद जरुरी है। नॉलेज पास करने के लिए भी कोई प्लेटफॉर्म नहीं है। वर्तमान में चाइना फर्नीचर मार्केट पर कब्जा 37% है जबकि इंडिया का 1% वो भी हैंडीक्राफ्ट में।
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