दक्षिण भारत के मशहूर ब्रांड रॉयल ओक फर्नीचर के संस्थापक मिस्टर विजय सुब्रमनियम के जीवन की संघर्ष भरी कहानी बॉलीवुड के किसी पुरानी फ़िल्म की कहानी से कम नहीं है. जिसमें एक नौजवान ने अपने घर की माली हालात के सामने टूट जाने के बजाय, दक्षिण भारत में बना दिया Royal Oak को एक मशहूर ब्रांड”.
फर्नीचर इंडस्ट्री में Royal Oak ब्रांड मतलब मिस्टर विजय सुब्रमन्यम, जो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. फर्नीचर डिजाईन एंड टेक्नोलॉजी के फाउंडर मिस्टर प्रगत द्विवेदी से बात करते ना केवल अपने जीवन के संघर्ष के दिनों को शेयर किया बल्कि ये भी बताया कि कैसे फर्नीचर इंडस्ट्री की दुनिया में उन्होंने रॉयल ओक को एक ब्रांड बनाया. गरीबी और पाई पाई के मोहताज किसी भी शख्स के लिए इस मोकाम तक पहुँचाना एक सपने को पूरा होने जैसा है. मिस्टर विजय सुब्र्मनयम ने आज जो मोकाम हासिल किया है वहाँ तक पहुंचते पहुंचते अधिकांस लोगों की हिम्मत टूट जाती है. मगर मिस्टर विजय 18 साल की उम्र में ही ये जान लिया था कि इस दुनिया की भीड़ में अनब्रांड नहीं बल्कि एक ब्रांड ही लम्बी रेस का घोड़ा बन सकता है.
एफडीटी से बात करते हुए मिस्टर विजय सुब्रमन्यम ने कहा कि उन्होंने अपने छोटे भाई मदन सुबरमण्यम के साथ मिलकर फर्नीचर का काम शुरू किया था। मगर फर्नीचर के कारोबार तक पहुँचने के पहले जो उन्होंने संघर्ष किया वो बॉलीवुड के किसी पुरानी फिल्म के कहानी से कम नहीं है. मिस्टर विजय बेहद निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से थे. उनकी माँ मुनार में एक छोटी सी दुकान चलाती थी. घर की माली हालात और माँ के संघर्ष ने इनको इतना विचलित कर दिया कि उन्होंने व्यवसाय शुरू करने का मन बना लिया.
उन्होंने कुछ रुपये इक्कठे कर चाय की पत्ती का व्यवसाय शुरू किया. मोनार टीएस से चाय पाउडर खरीद कर किराना दुकानों में इसकी सप्लाई शुरू की. मगर उनकी ये कोशिश तब फ्लॉप हो गयी, जब उनके चाय को किसी ग्राहक ने खरीदा ही नहीं. इन्होने हार नहीं मानी बल्कि अपने चाय के सभी पैकेट को एकत्र किया, फिर चाय के गुणवक्ता को ठीक करते हुए उसके स्वाद को स्ट्रोंग बनाया फिर उसे चाय की दुकान को आपूर्ति करना शुरू कर दिया, शुरुवात में थोड़ी मुश्किल हुई मगर धीरे धीरे इनके चाय की डिमांड बढ़ने लगी, और देखते ही देखते इनके चाय की डिमांड होने लगी. इस काम में उनके छोटे भाई और माँ ने साथ दिया. इसके बाद मिस्टर विजय ने एक रेस्तरां शुरू करने का मन बनाया, मगर इनके चाचा ने रेस्तरां खोलने की इजाजत नहीं दी. बल्कि चाचा ने उनके चाय के कारोबार को बंद करवा दिया. इसके बाद मिस्टर विजय ने क्रेडिट कार्ड बेचने वाली एक कंपनी में नौकरी की. पहले महीने में मैंने 100 कार्ड बेचा, दूसरे महीने 130 कार्ड और तीसरे 130 कार्ड बेचे, जबकि इनके सहकर्मी 30 कार्ड से ज्यादा नहीं बेच पाए. मिस्टर विजय की ये उपलब्धी उनके सहकर्मियों को खटकने लगी और उन सहकर्मियों ने इनको नौकरी छोड़ने की धमकी दे डाली, जिसके बाद इन्होने नौकरी छोड़ दी.
नौकरी छूटने के बाद मिस्टर विजय को कोयम्बटूर में एक सरकारी प्रदर्शनी के बारे में पता चला. वो उस मेले को देखने पहुँच गए, वहाँ वो लगे हर स्टाल पर गए और बड़े ही बारीकी से उन सामानों को देखा जो वहाँ बेचने के लिए स्टाल पर रखे थे. उसमें एक स्टाल खाली था जिसे देख विजय जी ने उस स्टाल के विषय में पता किया तो पता चला कि यह स्टाल बहुत महंगा है, 28,000 रुपये महीने पर ये स्टाल मिल रहा था. उन्होंने उस स्टाल को 2,000 रुपये देकर अपने लिए बुक कर लिया. इसके लिए उन्होंने 7000 रुपये में अपना स्कूटर गिरवी रख दिया, इस दौरान उनके दो दोस्त ने 55,000 रुपये की मदद भी की.
यहाँ इन्होने कैंडल स्टैंड बेचना शुरू किया इसे बेचने पर 2 महीने के अंत के बाद अच्छी बिक्री हुई. इसके बाद अगली प्रदर्शनी कैनर केरल में लगी, यहाँ उन्होंने प्लास्टिक की बोतलें और मोमबत्ती स्टैंड बेचने का काम किया. उसके बाद घरेलू सामान, फिर परिधान भी बेचा. मगर मिस्टर विजय कोइ अच्छी आमदनी नहीं हुई, तब उन्होंने टीवी स्टैंड बेचने का मन बनाया और अगली प्रदर्शनी में उन्होंने टीवी स्टैंड बेचना शुरू किया, वो कोयम्बतूर से टीवी स्टैंड खरीद खरीद कर लाते और उसे प्रदर्शनी में बेचते. करीब चार पांच साल तक वो घूम घूम कर टीवी स्टैंड बेचते रहे.
करीब पांच साल की भाग दौड़ के बाद मिस्टर विजय ने अपने कारोबार के लिए बैंगलोर को चुना और साल 1998 में वो बैंगलोर आ गए. यहाँ उन्होंने सफीना प्लाजा में 200 वर्ग फीट जगह को एक हफ्ते के लिए 7000 देकर उसे बुक कर लिया. यहाँ उन्होंने सात टीवी स्टैंड डिस्प्ले में लगाए. मगर चार दिन तक उनकी एक भी टीवी स्टैंड नहीं बिकी जिससे परेशां होकर उन्होंने उस जगह को खाली करने का मन बना लिया, मगर पांचवें दिन दो टीवी स्टैंड, छठवें दिन पांच और सातवें दिन लगभग 7 टीवी स्टैंड बिक गए. इसके बाद मिस्टर विजय ने वहां अपने कारोबार को जारी रखा, और टीवी स्टैंड के साथ साथ सोफा और डाइनिंग का काम भी शुरू कर दिया.
मिस्टर विजय ने बताया कि फर्नीचर के लिए उन्होंने सीएमएच रोड पर अपना दूसरा स्टोर खोला. हांलाकि उन्हें इस बात का भी डर लग रहा था कि उन दिनों भारतीय बाज़ार में रेडीमेट फर्नीचर का आयात चीन से बड़े पैमाने पर हो रहा था. ऐसे में मिस्टर विजय चीन गए और वहां से बड़े पैमाने पर फर्नीचर की खरीदारी की. और उसे भारतीय बाज़ार में उतार दिया जिसे लोगों ने हाथो हाथ लिया. मिस्टर विजय ने बताया कि उन्होंने उस समय अपने ब्रांड का नाम ओक एन ओक रखा था, मगर जब वो उस ब्रांड नेम को रजिस्ट्रेशन कराने का मन बनाया तब उन्हें पता चला कि इस नाम से चेन्नई में पहले से ही रजिस्ट्रेशन हो रखा है, इसके बाद मिस्टर विजय ने अपने ब्रांड का नाम रॉयल ओक रखा. इसतरह रॉयल ओक का जन्म 2010 में हुआ.
साल 2010 से शुरू हुआ रॉयल ओक का सफ़र समय के साथ बढ़ता गया, पहले बंगलौर में नम्बर एक फर्नीचर सेलर बने, उसके बाद साल 2019 तक पूरे दक्षिण भारत के नंबर एक बन गए. उन्होंने बताया कि साल 2019 तक पूरे दक्षिण भारत में उनके 50 से ज्यादा फर्नीचर स्टोर उन्होंने खोले. कोविड महामारी के दौरान जब पूरा देश बंद था तब उन्होंने अपने रॉयल ओक ब्रांड को ऑनलाइन उतार दिया. शुरुवाती दौर में इन्हें और इनकी टीम को मेहनत करनी पड़ी मगर ऑनलाइन बाज़ार में अपना सिक्का जमाने में इन्हें समय नहीं लगा. इन्होने ने हमेशा मिडल क्लास और लोअर मिडल क्लास के कंज्यूमर्स को टारगेट रखा. इनका मानना है कि अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के साथ इसमें बहुत ईमानदार होना होगा, सफलता पाने के लिए दुनिया में कोई शॉर्टकट नहीं है, आज इनकी मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि रॉयल ओक फर्नीचर की दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बना चुका है.
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